तुलसीदास की कहानी | Tulsidas ki kahani | full story of tulsidas in hindi
Tulsidas ka jivan parichay
Tulsidas ka janm
Tulsidas का जन्म 1554 मे हुआ।
एक समय की बात है। गंगा तट के करीब Rajapur के सोरन गांव के निवासी आत्माराम दुबे घर के बाहर परेशान बैठे थे क्योंकि उनकी बीवी एक बच्चे को जन्म देने वाली थी समय की घड़ी समाप्त हुई। जब दाई दौड़ते दौड़ते बाहर आई। जब दाई ने एक ऐसी खबर सुनाई आत्माराम दुबे अपना सर पकड़ कर बैठ गए। उन्होंने कहा कि लड़का हुआ है। लेकिन आपकी बीवी अब इस दुनिया में नहीं रही। इस घटना के बाद एक जोशी को बुलाया गया उस जोशी ने बताया की दुबे का बेटा एक शैतान है वह दुबे को भी खा जाएगा यह सोचकर दुबे ने अपना बेटा घर से बाहर निकाल दिया लेकिन दाई को उस पर तरस आ गया और वह उसे लेकर अपने घर चली गई। चुनिया दाई बच्चे को घर लेकर गई तो उसकी सास और उसके पति ने उसे बहुत खड़ी- खोटी सुनाई अफसोस कुछ दिनों बाद दुबे की मौत हो गई और चुनिया को सांप के काटने की वजह से वह भी चल बसी। दुनिया के पति का शक यकीन में बदल चुका था।
Story of tulsidas (Tulsidas ki kahani)
उसने उस बच्चे को घर से बाहर निकाल दिया। वह बच्चा पेड़ के नीचे जाकर सोया खाने के लिए लोगों से भीख भी मांगी। लेकिन सारे उसे मनहुस समझ कर भगा दिया करते। 1 दिन वह भीख मांगते मांगते मंदिर पहुंच गया। वहां पर उसकी मुलाकात संत नरहरी दास से हुई जिन्होंने उस पर तरस खाकर उसको अपने पास रखा और उसे राम का पाठ पढ़ाया। संत जी उसे अपने आश्रम में ले गए और उसे वेदों का ज्ञान भी बताया वहीं से उसका नाम पड़ा रामभोला। संत ने उन्हें यह भी बताया कि किस तरह राम भगवान ने 14 वर्ष का वनवास काटा गरीबों और मजदूरों की मदद करी। और फिर उन्हें आचार्य शेष सनातन के साथ काशी ले गए।
वह चाहते थे कि आगे का ज्ञान वह आचार्य से प्राप्त करें सनातन बाबा ने राम भोला को वेदों का ज्ञान दिया और उसे बहुत सारी धार्मिक किताबें भी पढ़ाई। शिक्षा पूरी होने के बाद उसके गुरु जी ने उससे दक्षिणा यह मांगा की जाओ सबको राम का पाठ पढ़ाओ।
Tulsidas ki jivani (Tulsidas ki kahani)
रामकोला वापस अपने गांव पहुंचा और वहां पर जाकर राम का सत्संग करने लगा उसे सुनने के लिए बहुत से लोग आया करते क्योंकि उसके सत्संग से लोगों के दुख मीट जाया करते थे। और यहीं से रामभोला बना तुलसीदास (Tulsidas)। Tulsidas की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी।
Tulsidas ki prem kahani
उसके बाद एक गांव के बंधु पाठक को Tulsidas के बारे में पता चला तो उन्होंने अपनी बेटी का विवाह Tulsidas से करवाने का तय कर लिया।
Tulsidas ki patni ka naam
यहीं से Tulsidas रत्नावली की शादी हो गई।
Tulsidas love story
Tulsidas रत्नावली से बहुत प्रेम करते थे। वह उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकते थे। एक दिन जब यह काम से घर वापस लौटे। उन्होंने देखा कि उसकी पत्नी अपने मायके गई हुई है। वह उसके बिना नहीं सकते थे और तो उससे मिलने के लिए वह रात तेज बारिश में भी अपनी पत्नी से मिलने गए। उसके घर चले गए लेकिन रत्नावली का जब आप कुछ और ही था।
रत्नावली ने कहा अगर तुम इतना प्यार भगवान राम को करते तो आज तुम्हारे सारे दुख मिट जाते हैं। इस बात ने तुलसीदास को बदल के रख दिया। यह बात सुनकर उन्होंने सब कुछ त्यागने का निश्चय कर लिया। वह गंगा के तट पर गए और राम का जाप करने लग गए।
Tulsidas life story
फिर वह राजपुर गांव में गये और वहां पर उन्होंने राम का सत्संग हिंदी में शुरू कर दिया क्योंकि उस समय हिंदी और संस्कृत बोली जाती हुई। उनके सत्संग से काफी लोगों को राहत मिल गई थी। लेकिन कुछ ऐसे ब्राह्मण से जो चाहते थे कि रामायण का प्रचार केवल संस्कृत भाषा में होना चाहिए क्योंकि संस्कृत भाषा मैं होना चाहिए क्योंकि संस्कृत भाषा ही सही है रामायण को पढ़ने के लिए। कुछ ब्राह्मणों ने उनका भरिष्कार करा लेकिन वह अपना कर्म करते रहे।
Tulsidas ram ka miln
उनके सत्संग को सुनने के लिए सबसे पहले एक बूढ़े आदमी आते थे और सबसे बाद में जाया करते थे। कुछ दिन बाद उनको आभास हुआ कि वह बूढ़ा आदमी को ही नहीं बल्कि राम के भक्त हनुमान है। जब वह हनुमान से मिले उन्होंने पूछा श्री राम भगवान कहां पर है मुझे उनसे मिलना है। हनुमान जी ने कहा तुम चित्रकूट जाओ तुम्हारी इच्छा वहीं पर पूरी होगी। अब Tulsidas चित्रकूट के लिए निकल गए जब मैं चित्रकूट पहुंचे। तब वह एक पेड़ के नीचे बैठकर राम का जाप कर रहे थे। उसी वक्त दो राजकुमार उनके पास आए और उनके साथ बैठे तब Tulsidas ने उन दोनों राजकुमारों को तिलक लगाया और राजकुमार उन्हें प्रणाम कर के वहां से निकल गए। फिर पेड़ पर बैठे तोते नहीं कहा जिन राजकुमारों को तुमने तिलक लगाया है उनमें से एक राम भगवान है यह सुनकर Tulsidas उनके पीछे भागे लेकिन उन्हें वह नहीं मिले जब वह वापस आए तो उन्हें वहां तोता भी नहीं दिखा। वह भी उड़ करके जा चुका था।
एक समय की बात है। गंगा तट के करीब Rajapur के सोरन गांव के निवासी आत्माराम दुबे घर के बाहर परेशान बैठे थे क्योंकि उनकी बीवी एक बच्चे को जन्म देने वाली थी समय की घड़ी समाप्त हुई। जब दाई दौड़ते दौड़ते बाहर आई। जब दाई ने एक ऐसी खबर सुनाई आत्माराम दुबे अपना सर पकड़ कर बैठ गए। उन्होंने कहा कि लड़का हुआ है। लेकिन आपकी बीवी अब इस दुनिया में नहीं रही। इस घटना के बाद एक जोशी को बुलाया गया उस जोशी ने बताया की दुबे का बेटा एक शैतान है वह दुबे को भी खा जाएगा यह सोचकर दुबे ने अपना बेटा घर से बाहर निकाल दिया लेकिन दाई को उस पर तरस आ गया और वह उसे लेकर अपने घर चली गई। चुनिया दाई बच्चे को घर लेकर गई तो उसकी सास और उसके पति ने उसे बहुत खड़ी- खोटी सुनाई अफसोस कुछ दिनों बाद दुबे की मौत हो गई और चुनिया को सांप के काटने की वजह से वह भी चल बसी। दुनिया के पति का शक यकीन में बदल चुका था।
Story of tulsidas (Tulsidas ki kahani)
उसने उस बच्चे को घर से बाहर निकाल दिया। वह बच्चा पेड़ के नीचे जाकर सोया खाने के लिए लोगों से भीख भी मांगी। लेकिन सारे उसे मनहुस समझ कर भगा दिया करते। 1 दिन वह भीख मांगते मांगते मंदिर पहुंच गया। वहां पर उसकी मुलाकात संत नरहरी दास से हुई जिन्होंने उस पर तरस खाकर उसको अपने पास रखा और उसे राम का पाठ पढ़ाया। संत जी उसे अपने आश्रम में ले गए और उसे वेदों का ज्ञान भी बताया वहीं से उसका नाम पड़ा रामभोला। संत ने उन्हें यह भी बताया कि किस तरह राम भगवान ने 14 वर्ष का वनवास काटा गरीबों और मजदूरों की मदद करी। और फिर उन्हें आचार्य शेष सनातन के साथ काशी ले गए।
Tulsidas story(Tulsidas story in hindi)
वह चाहते थे कि आगे का ज्ञान वह आचार्य से प्राप्त करें सनातन बाबा ने राम भोला को वेदों का ज्ञान दिया और उसे बहुत सारी धार्मिक किताबें भी पढ़ाई। शिक्षा पूरी होने के बाद उसके गुरु जी ने उससे दक्षिणा यह मांगा की जाओ सबको राम का पाठ पढ़ाओ।
Tulsidas ki jivani (Tulsidas ki kahani)
रामकोला वापस अपने गांव पहुंचा और वहां पर जाकर राम का सत्संग करने लगा उसे सुनने के लिए बहुत से लोग आया करते क्योंकि उसके सत्संग से लोगों के दुख मीट जाया करते थे। और यहीं से रामभोला बना तुलसीदास (Tulsidas)। Tulsidas की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी।
Tulsidas ki prem kahani
उसके बाद एक गांव के बंधु पाठक को Tulsidas के बारे में पता चला तो उन्होंने अपनी बेटी का विवाह Tulsidas से करवाने का तय कर लिया।
Tulsidas ki patni ka naam
यहीं से Tulsidas रत्नावली की शादी हो गई।
Tulsidas love story
Tulsidas रत्नावली से बहुत प्रेम करते थे। वह उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकते थे। एक दिन जब यह काम से घर वापस लौटे। उन्होंने देखा कि उसकी पत्नी अपने मायके गई हुई है। वह उसके बिना नहीं सकते थे और तो उससे मिलने के लिए वह रात तेज बारिश में भी अपनी पत्नी से मिलने गए। उसके घर चले गए लेकिन रत्नावली का जब आप कुछ और ही था।
रत्नावली ने कहा अगर तुम इतना प्यार भगवान राम को करते तो आज तुम्हारे सारे दुख मिट जाते हैं। इस बात ने तुलसीदास को बदल के रख दिया। यह बात सुनकर उन्होंने सब कुछ त्यागने का निश्चय कर लिया। वह गंगा के तट पर गए और राम का जाप करने लग गए।
Tulsidas life story
फिर वह राजपुर गांव में गये और वहां पर उन्होंने राम का सत्संग हिंदी में शुरू कर दिया क्योंकि उस समय हिंदी और संस्कृत बोली जाती हुई। उनके सत्संग से काफी लोगों को राहत मिल गई थी। लेकिन कुछ ऐसे ब्राह्मण से जो चाहते थे कि रामायण का प्रचार केवल संस्कृत भाषा में होना चाहिए क्योंकि संस्कृत भाषा मैं होना चाहिए क्योंकि संस्कृत भाषा ही सही है रामायण को पढ़ने के लिए। कुछ ब्राह्मणों ने उनका भरिष्कार करा लेकिन वह अपना कर्म करते रहे।
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Tulsidas ka ram ji sai miln |
उनके सत्संग को सुनने के लिए सबसे पहले एक बूढ़े आदमी आते थे और सबसे बाद में जाया करते थे। कुछ दिन बाद उनको आभास हुआ कि वह बूढ़ा आदमी को ही नहीं बल्कि राम के भक्त हनुमान है। जब वह हनुमान से मिले उन्होंने पूछा श्री राम भगवान कहां पर है मुझे उनसे मिलना है। हनुमान जी ने कहा तुम चित्रकूट जाओ तुम्हारी इच्छा वहीं पर पूरी होगी। अब Tulsidas चित्रकूट के लिए निकल गए जब मैं चित्रकूट पहुंचे। तब वह एक पेड़ के नीचे बैठकर राम का जाप कर रहे थे। उसी वक्त दो राजकुमार उनके पास आए और उनके साथ बैठे तब Tulsidas ने उन दोनों राजकुमारों को तिलक लगाया और राजकुमार उन्हें प्रणाम कर के वहां से निकल गए। फिर पेड़ पर बैठे तोते नहीं कहा जिन राजकुमारों को तुमने तिलक लगाया है उनमें से एक राम भगवान है यह सुनकर Tulsidas उनके पीछे भागे लेकिन उन्हें वह नहीं मिले जब वह वापस आए तो उन्हें वहां तोता भी नहीं दिखा। वह भी उड़ करके जा चुका था।
इसके बाद Tulsidas की राम भगवान के प्रति श्रद्धा और बढ़ गई और उनके भक्त भी बहुत सारे हो गए तो उन्होंने तीर्थ यात्रा करने का निश्चय करा पहले वह गए वृंदावन वहां के लोग सोच कर परेशान थे की राम का भक्त कृष्ण की पूजा कैसे करें गा। लेकिन वहां पर जाकर कुछ ऐसा चमत्कार हुआ इसे देखकर सारे दंग रह गए। भगवान कृष्ण के मूर्ति राम की मूर्ति में बदल गई।
उसके बाद राजस्थान के पास उनका डेरा था। वहां पर उन्होंने भेदभाव को हटाकर आदिवासियों को भी गले लगाया। इसके बाद उन्होंने महाराणा प्रताप की उलझन सुलझाई। उन्होंने मानसिंह को समझाया कि अपने ही भाई बंधु के खिलाफ नहीं लड़ना चाहिए।
Tulsidas and akbar story
जब akbar को मानसिंह के पीछे हटने की खबर मिली और उन्हें उस में तुलसीदास का हाथ लगा यह जानकर अकबर भी बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने Tulsidas को अपने दरबार में बुलाया लेकिन Tulsidas ने दरबार में आने से मना कर दिया। मेरे भजन मेरे राम के लिए हैं मैं किसी राजा के दरबार में नहीं जा सकता।
Tulsidas ram charit manas
इसके बाद वह वाराणसी पहुंचे वहां पर जाकर उन्होंने राम चरित्र मानस लिखी वह भी हिंदी में।
उसके बाद राजस्थान के पास उनका डेरा था। वहां पर उन्होंने भेदभाव को हटाकर आदिवासियों को भी गले लगाया। इसके बाद उन्होंने महाराणा प्रताप की उलझन सुलझाई। उन्होंने मानसिंह को समझाया कि अपने ही भाई बंधु के खिलाफ नहीं लड़ना चाहिए।
Tulsidas and akbar story
जब akbar को मानसिंह के पीछे हटने की खबर मिली और उन्हें उस में तुलसीदास का हाथ लगा यह जानकर अकबर भी बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने Tulsidas को अपने दरबार में बुलाया लेकिन Tulsidas ने दरबार में आने से मना कर दिया। मेरे भजन मेरे राम के लिए हैं मैं किसी राजा के दरबार में नहीं जा सकता।
Tulsidas ram charit manas
इसके बाद वह वाराणसी पहुंचे वहां पर जाकर उन्होंने राम चरित्र मानस लिखी वह भी हिंदी में।
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Tulsidas ram charit manas |
Tulsidas ram charit manas kab or kitne dino mai likhe
तुलसीदास जी ने 1631 मे राम चरित्र मानस लिखना शुरू करा। उन्हें पूरे 2 वर्ष 7 महीने और 26 दिन में ग्रंथ की समाप्ति करी। 1633 मे रामचरितमानस पूरी हुई।
यस देखकर वाराणसी के लोग आग बबूला हो गए और जब वह उस राम चरित्र मानस को Tulsidas से लेने गए। तब उन्हें Tulsidas के घर के बाहर खुद राम जी दिखे यह देखकर मैं हैरान हो गए और उन्होंने और पूरी दुनिया ने रामचरित्र मानस को स्वीकार करा।
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